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रूप बदल कर रानी ने उतरा राजा का घमंड
एक नगर में राजा विश्वजीत राज्य कर रहा था. राजा विश्वजीत को अपने शक्ति और धन का बड़ा ही गर्व था.
राजविश्वजीत बिना किसी वजह के दूसरे राज्यों पर आक्रमण करके उनकी संपत्ति और धन लुटता रहता था.
राजा विश्वजीत इतना लालची हो गया था, उसे सारे राज्यों का धन चाहिए था.
राजा हमेंशा अपने पडोसी मुल्क पर हमला करता रहता था.
राजा के सैनिको को यह बात जरा भी पसंद नहीं थी, लेकिन वह राजा का हुक़ून को माना नहीं कर सकते थे. इसी लिए बिना मर्जी के वह लढाई लढने चले जाते थे.
लेकिन राजा विश्वजीत को इस बात से जरा भी फरक नहीं पड़ता था. उसे सिर्फ धन से मतलब था.
इतना ही नहीं राजा ने अपने प्रजा पर भी ज्याद कर लगा दिए थे, इससे जनता में राजा के प्रति गुस्से की भावना जागृत हो गई थी.
एक दिन रानी ने राजा से कहा की , महाराज हमारी राज्यों की सिमा बढ़ती ही जा रही है, अगर हमारे ग्रह हमारे खिलाफ हो गए तो इससे हमारा बहुत ही नुकसान हो सकता है.
और उसमे आपने अपनी प्रजा पर ज्यादा कर लगा दिया है. ऐसे में प्रजा के आपके प्रति लोकप्रिय की भावना काम हो जाएगी. और आपके खिपाक बगावत करेगी.
रानी की यह बात सुनकर राजा को बड़ा ही गुस्सा आ गया. राजा ने अपने रानी का हात पकड़ा और उसे खींचते हुए अपने ख़जाने की और लेकर गया. और बोला यह देखो मेरी संपत्ति इसके आगे कोई भी बगावत नहीं कर सकता राजा ने अपने मुछो पर ताव देते हुए अकड़ में कहा.
और यह कहे कर राजा वहा से चला गया.
रानी ने अपने मन में यह तय कर लिए की वह राजा का घमड़ को तोड़ कर ही रहेंगी।
दूसरे दिन राजा के दरबार में एक साधु आया.
दरबार में आते ही, साधु ने राजा से कहाँ की हे महाराज आज से तीन दिन बाद आपकी मृत्यु होंगी.
यह सुनकर ही राजा के होश उड़ गए और वह बोला हे साधु महाराज इस पर कोई उपाय तो होगा, राजा की बात सुनकर साधु ने आगे कहा की एक उपाय है. अगर तुम अपने मौत से बचना चाहते हो तो, तुम अकेले ही सारा खजाना बांधकर दूसरे राज्यों पर आक्रमण करना होगा. और इस प्रकिया में आपके सैनिक आपका साथ नहीं देंगे। आप का ख़जाना ही आपकी तरफ से युद्ध में युद्ध करेगा.
साधु की यह बात सुनकर राजा आचार्य में पड़ गया और बोला माफ़ की कीजिए साधु महाराज लेकिन मेरी तरफ से यह निर्जीव धन के से लड़ेगा.
राजा की यह बात सुनकर साधु महाराज बोले यह बात जानते हुए भी, यह खजाना तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकता तो इसका इतना मोह क्यों,
साधु की बात सुनकर राजा को अपने गलती का एहसास हुआ, और उसे अपने गलती के शमा मांगी और आइंदा ऐसी गलती वह कभी भी नहीं करेगा.
राजा की बात सुनते ही साधु ने अपनी दाढ़ी निकाल दी, जब राजा ने साधु की और देखा तो उसके होश ही उड़ गए साधु की जगह राजा की पत्नी यानि के रानी खड़ी थी, राजा का घमड़ तोड़ ने के लिए उसने साधु का वेश परिधान किया था.
इस कथा के माध्यम से हमें यह जानने मिलता है, की आप अपने जीवन में चाहे कीतनाभी धन अर्जित कर लो लेकिन वह धन आपके मृत्यु के समय काम नहीं आएगा.
Reviewed by Daily Wisdom
on
November 30, 2019
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